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हाम्रो बारमा

हमर खोनमा बंश

हम चि नेपालके आदिवासी
खोनमा वंशके थारु जाति
पुस्ता पुस्ता नेपालमे रैहके
पुर्खासव करैछेले खेतिपाती


महादेव पार्वती और हनुमान
यी तिनो देवता चियैहमर महान
दुई भाई खोना बैद्य और ऐहमान
खोनमा वंशमे भेल पुहाँतु थारु महान

हम चि नेपालके आदिवासी
खोनमा वंशके थारु जाति
अखार अगहन पूर्णिमा ऐल
खोनमा थारु आनन्द भेल
अपन कुल देवताके पुजा कैर
सव परिवार खुसी भेल
हम चि नेपालके आदिवासी खोनमा वंशके थारु जाति


पुर्खा सव चढाइछै देवताके छागर पाठी
यी अन्यास है छै खोनमा वंशके थारु जाति
हम खोनमा थारु चि शिव महर्षिके सन्तनी
शिव महर्षिसे भेल महार्खिया थारु जाति
हम चि नेपालके आदिवासी

खोनमा वंशके थारु जाति
आवदेवताके पुजा करु फुल पान लरु और सुपारी
नै करु निमुखा प्राणीके उपर अन्याई हम सव थारु चि भगवान बुद्धके अनुयाई

सचिन्द्र कुमार चौधरी

बानो - १, सिरहा

थारु भाषा साहित्य गोष्ठी कार्यक्रम सबमे थारु विद्वान द्वारा पुष्टि करल गेल छै कि सम्राट अशोक और गौतम बुद्ध थारु चियै कैहकें कहै छै । यी वात देश विदेश के विद्वान सब यै वात पुष्टि करने छै । सम्राट अशोक येहेन विर, पराक्रमी और समाजसेवी छेलै जे आपन राजभैरमै हजार स्तुप धर्मशाला और शिलालेख निर्माण कैने छेलै । नेपाल भ्रमणके सिलसिलामे लुम्बिनिमे गौतम बुद्धके जन्मथलके निशानी के खातिर ई.पु. २५० मे एकटा स्तम्भ खडा करने छेलै जकरा अशोक स्तम्भके नामसे पुकारल जाइछै । महान थारु सम्राट अशोक मौर्य बनले जे थारु सब अखुनियो विवाहमे लगाइछै और समधी मिलैके समयमे मुरमे पगडी (मुरेट्ठा) बाईन्हके और हाथमे तल्वाईर बोइक के राजसी ठाट्वाट्के साथ विवाह करै छै जे सम्राट अशोक के ठाट्बाट् छेलै । थारु सम्राट अशोकके जाईत भेला से थारु सब मुरमे पगडी (मुरेट्ठा) और तल्वाईर लैके परम्परा विवाहमे अखुनतो छै।

"सुरन्दर सुन्हकार हैके एक कथा"

सगरमाथा अञ्चलके सप्तरी जिल्ला पुर्व पश्चिम सडक खण्डके धरमपुर लग एकटा नदी बहैछै । उ नदीके नाम “सुनैर सुन्दरी" चियै । औइ है सुनैर धारके आसपासके गाममे शिव ईश्वर के बेटा सुरन्दर या पुरन्दर के घर छेलै । सुरन्दर सुनैर धारके आसपासके खेतमे जेष्ठ, असार, महिना मकाइ-मरुवाके रखवारी करैके लेल मचान बन्याके राखी (रखबारी) करै छेलै या बाँसके बाँसी(बाँसुरी) मे समयानुसारके चाँचैर,विरहैन,बरमला गावै छेलै यी बात पूर्खा/हमर पुर्वज या बाबा बाराजु सब बाँसीमे मात्रे नै कि हर कोदाईर जोतै बखत गाई, भैंसी चरावै बखत और समय-समयमे रंग विरङ्गके गीत सब अपने थारु भाषामे गाबै छेले । एक समयके बात चियै सुरन्दर खेतमे मकाइ, मरुवाके रखबारी करैके क्रममे राइतके बाँसुरीमे चाँचैर, विरहैन, बरमसा गावैत-गावैत सुनैर धारके आसपासमे आवाज गुणजैत-गुणजैत और सुनैर धार सुनैत-सुनैत खुशीएटा नै पुरे विमोहित भ्याके सुनैर धार मनुषके रुपधारण कैरके मचानके निचा(तर)मे आइबके सुनैरधार कैहै छै के छहक हौ ? मचानमे सुरन्दके मनमे डर पैसगेलै सुनैर कहै छै निचा आब, हमहुँ चियै लोके( मनसे) डरनैकर । सुरन्दर मचानसे निचा आबैछै और चिन्हार परिचय करैछै । परिचयके बाद सुनैर कहै छै तो छौरी रहतिहक त सखी लगैतियै तो छहक छौरा आव हमरा तोरा सादी (वियाह) हेवाके चाहि कहैत सुरन्दरसे सत बैद्य कराबै छै यी परम्परा बहुत दिन तक चललै तेकरबाद घरसे सिनुर, काजल, टिकली, ऐना, चुरी, लहठी विवाहके सब समान लाबै के दुनु गोराके मन्जुर है छै । सुनैर धार कनहीके अलग (दूर) मे ज्याके विलिन भ्याजाईछै सुन्दर मचानमे ज्याके सुईत जाईछै । दोसर दिन (विहान) सुरन्दर घर आइबके बजारमे ज्याके एक गद्दी भुसना सिन्दुर, काजल, टिकली, ऐना, चुरी, लहठी, सब समान किनके घरमे कोइठ के उपर (कन्हारी) मे राइख देलक या सुरन्दर भात ख्याके राखी करैले खेत चैल गेलै और सुरन्दरके घरबालीयो छेलै लेकिन धियापुता (बच्चा) नै भेल छेलै । यहै क्रममे सुरन्दरके घरबाली कोना काम से कोइठ लग गेलै त देखैछै नयाँ समान सब राखल । सुरन्दरके परिवार देखलक त विचार करे लागल और समान सबके सोहो खोइल-खोइलके देखे लागल त दोसरे रंगके मन (भावना) मे शंका जागेलागल । यी बातसब सुरन्दर (घरबाला) के कनङ्गके कहतै । पहिलेका कनियाँ (महिला) सब घरबालके देवता समान मानै छेलै । बादमे शंका उपशंका जागैत और विचार करैत सुरन्दरके घरबाली नयाँ विचार सोचलक कि सबसे बडका चिज सिन्दुर चियै ।

इन्द्रदेव चौधरी

हम यी सिनरके राइख लै चियै या कच्चखुहा ईटाके पिसके यहै पुरियामे राइख देवै और स्याहा करबे केलकै । सब समान जैहनने राख्ने छ्याल तैहनने राइख देलक और घरबाला सांझमे खेलक या कोईठमे कनहारीमे रखलाहा समान सब लेलक या खेत चैल ग्याल । मचानमे चरके सुरन्दर बॉसीमे फैर चाँचैर, विरहैन गावेलागल बांसीके आवाजसे सुनैर धार फेर विमोहित भ्याके मनुसके रूप धारन कैरके मचानके लग आइबके सुन्दर के कैहै छै बाँसी बजाबैले आव छोईर दियौ निचा आबु । पुच्छै छै जे हम कहने छेलियै से समान सब लाबलीयै ? तब सुरन्दर सब समान दैत कहछै है हैया लिय सब समान । सुनैर सब समान देखैत पुरिया (गद्दी) खोलैत सिनुर ताकै छै त दे खै छै कच्चाखुहा ईटाके पिसल । तब कैहैछै हमरा तो ठकै छ्या यी ठकैके मज्जा (बदला) चखेबै तोराहम, यतेक बात कहैत सुनैर धार किछो दुर ज्याके विलिन भ्यागेलै । कुछे दुरके बाद वर्षा सथर-सथर हेबेलागल । वर्षाके चलते सुनैर धारमे बाइरह बहौत है के चलते सुरन्दर के खेत अठ घोखा मचान या सुरन्दरके सब कुछ देहयाके कते ल्याग्याल या नै कतौ ओकर नामो निसान नै रहेदेलक । तै है दुवारे सुरन्दर सुन्हकार भ्यागेल ।

खोनमा के पहिचान

महादेव, पार्वती, हनुमान कहे-२
हमसब चियै खोनमाके सन्तान यौ
चोथुवा, खलुवा, झौसुवा कहावे
वितल जवानाके बात यै ।


समय, सहयोगके कमी से
आपन आपन विधि केलक
नेहम चोथवा नेहम खलुवा-२
नेहम झौसवा चियै यौ ॥
सब खोनमा एके चिये ।
यी छेल अन्ध विश्वास यौ
। महादेव पार्वती चोयुवा, खलुवा


शिवके बेटा सुरन्दर, पुरन्दर-२
सुरन्दर भेल सुन्हकार यौ ।
प्रन्दर के बेटा जसराज, धनराज-२
औतैसे जन्म भेल खोनमा यौ ।
सब दियादी एके चिये
यी बात बुइझ लियौ ।
महादेव पार्वती हनुमान कहे
यी चियै खोनमा के पहिचान यौ ।


ढोरहाई चौधरी के इतिहास

आईसे करिब सयौं वर्ष पहिले खोनमा वंशके सातों पुस्तामे जन्म भेलहा ढोरहाई चौधरीके ढोरनी के नाभी बडका भेला से ढोरबा कहै छेलै वोइ समयमे जमिन्दारी शासन छेलै एक दिनके समय जमिन्दार, पटबारी भूमि कर लै ले ढोरबा कहे लागल जे कत से बाँकी (भूमिकर) तिरबौ हमरा खाईके बाल, बच्चाके पढावैले,लता कपडा लगाइले पुरावे ने करैछै । से हमे कत से तिर सकबौ ? गाम के लोग सब ढोरबा के उपर ताना मार लागलै कि ढोरबा के सम्पती लिलाम हे तै या कचहरी ल जेतै वोइ बात से ढोरहाई आपन पिता परमेश्वर शिव पार्वती और हनुमान के पुकार करे लागल ढोरहाई के कोनो बुइध काम नै केलक । एक दिन ढोरहाई आपन रिस नै थाइम सकलकै रिसके मारे पुजा करैवला स्थल हनुमान जी के धजा तोड फोड कैरके नदीमे विसर्जन कर देलकै । वोकर मानसिकता चेन्ज भेला से कहे लागलै जे हमरा समस्या से मुक्ति करेतै तेकरे पुजा करबे करिब एक सालके बाद फेरो जमिन्दार पटबारी भूमिकर लैले ढोरहाई चौधरीके घर ऐलै घरके लोक सबके पुछलकै खौइ ढोरहाई घरके लोक सब कहलकै खरहौर मे भेटतौ ढोरहाई भागल खरहौर मे गेलै वै खरहौर मे चारु दिशा से घेरलकै खरहौर के हाती, घोड़ा सेना पुलिस, हसहैरी सबसे खरहौर कुटी-कुटी (थौवा-थौवा) कैर देलकै तैयो नै भेटलै, ढोरहाई भाइझ सबके देखैछेलै ओकरा कोयो नै देख सकैछैले तव गेरु बाबा स्यहा भेलै ताब ढोरहाई माइझके कहलकै कहा तोहर हनुमान बचाबैछौ महादेव पार्वती लग खेवौ से हमरा डाइर काइटके पुजा दिहे । कहा स्यहा हैछौ त हमार पुजा देवही।


बहुत दिनके बाद ढोरहाई आपन पुतौहके कहलकै कि हम भात नै खैवौ हमरले चुरा दही हेतै त भजेतै । घरमे दही नै छै कहलकै ताव ढोरहाई नै खेवौ कहलकै नै खेलकै तेकरबाद धिपलाहा दुध चुरा देलकै ढोरहाई खाइले लागलै खाईते खाईते ढोरहाईके मुहमे फोका भगेलै देखते लोक सबछक परेलागलै ताब ढोरहाई चौधरी कहेलागलै से स-परिवार सदस्य सब मिलके हमरा पुजा देवही ताब हमर फोका ठीक हेतै हमरा गोसाई घरके ओसरामे दिया बाइरके पूजा करहे परिवारके सुख शान्ति रहतौ हमरा अगहन या अखार के पूर्णिमा मे दही चुरा चरहाविहे ओहै दिनसे ढोरहाई माइझके पूजा करैत आईवरहल छै ।

वंशावली कथि ले

यै लौकिक जगतमे मानव सब मानवे चियै तौपर भी एक दोसरमे शुक्ष्म अति शुक्ष्म निरतता सब अखनतक छै जे अपरिहार्य छै जे अपरिहार्य छै हाड वंश, कुल नाता गोता, सबके सब फरक संज्ञा चियै एकर व्यवहार एक से दोसर सहभागीके सम्बन्ध रहेछै । कोनो यी देशके शासन व्यवस्था संचालन करै खातीर कानून ऐन नियम सबके निर्माण करैत ओकर परिकल्पना कराबैले राज्य कटीबद्ध रहेछ कानून उलंघन करैवालाके लेल दण्डके भी निर्धारण कर्ने रहेछै। ओइ मे से पारिवारिक कानून अन्तर्गत एकटा भागके रुपमे हाड, नाता एक चियै हाड नाता ऐन पिता पुर्खाके रजबूत से पैदा भेल सन्ताकके कैहझै मुलिकी ऐन हाड नाता कर्ती महल अन्तर्गत उके हाड तर्फ जन्म दिने आमा दिदी, बहिनी लगायत लाई करनी गरेमा सजाय हुन्छ । साथै एकै हाड नाता भित्रका नातामा विवाह गरेमा त्यस्तो विवाह बदर हुने छ। वै वाक्यांससे हाड नाता कि चियै स्पष्ट है छै। वंशावलीके महत्व ऐ वातसे सिसा जखा साफ हैछै।

बहुत बृद्ध बृद्धा, पुरान सबके झेलाइ भोगाई और कथा कहानी कैहबी अनुपातमे अग्गर एक हाड वशमे विवाह कैर देनाई नै ठीक ओकर परिणामके रुपने प्रियापुत्ता अल्सुधा, सुस्त मनस्थिती धियापुता भेलापर नै जीनगी (बच्नु) यी सब उदाहरणके रुपमे आबैछे और ऐकर वैज्ञानिक कारण भी छै। एके नसलके जाती परजातीके वृद्धि विकासमे प्रगती परिणाममुखी कम भेलासे एकके दोसरसे क्रस कऱ्याके विकासमे ( हाईब्रिड) उत्पादन करैछे जे करीब करीब सर्वसाधारण मानवके मनसपटलमे विद्यमान छै, तै हेतु हाड वंश अहम चिज चियै। खोनमा वंशजके विवाह गैर खोनमा संगे करैले हमर बन्धुवान्धव कत-कत छै उ सब जानकारी लिपी बद्ध रुपमे एक ठाम जानकारी राखैले भी ऐ बंशावलीके महत्त्व छै।

इन्द्र नारायण चौधरी

लक्ष्मिनियाँ-३, सिरहा

बच्चा सब जब मैया के गर्भ से बाहार निकलै छै त उ बहौत किसिम के वातावरण सब से क्रमश समाहित हैले थालै छै। धिरे धिरे वोकरा चेतना के विकास हेव लागेछै । बालक के पहिलका पाठशाला घर भेला से घरके बाबु, मैया, भैया दिदि तथा अन्य सदस्य सबसे बालक धिरे धिरे बहौत बात सिके थालैछै। सभ्य व्यवस्थित घरमे जन्मलहा बालक कनिएटा से बाठो या चलाक हेवै के साथे अपना से बड़का के प्रति आदर करैवला स्वभाव के है छै त सबदिन झगडालु, चोरैवाला स्वभाव के नै है है । तसर्थ हरेक बाबु भैया सबके आपन सन्तान के असल बनावैकै लेल वोकरा सबके छोटबेटा से खराब आचरण में लागैसे रोकैले परैछै । तेकरलेल वोकर मनोविज्ञान अर्थात बालक के अन्तरिक पक्ष के निक से बुइझके बोकर निक चाहना सबके पुरा कैर देबे परैछे । बालक स्कूल जाइले लागै छै त बालक प्रति के जिम्मेवारी बेसी से शिक्षक सबके उपर सरैछै । शिक्षक सब बालबालिका सबके निक वातावरण मे शिक्षण करैले सके परतै बालक किशोरावस्था और के नक्कल करै किसिमके है छै तहैसे शिक्षक सबके अपना सफा सुग्घर रहेले, निक आचरण व्यवहार करैले रहे पडतै, निक आचरण व्यवहार करैले रहे पडतै । बालबालिका सबके डर त्रासके वातावरण से निक वातावरण में शिक्षण करला से निक प्रभाव पडला से शिक्षक सबके विशेष ध्यान पुऱ्यायले पडैछै । बोकर सबके चाहना अनुसार खेलैले नाचैले, गित गावै गावैले कथा कसैले आदी, विभिन्न तरिका सबसे शिक्षण करला से बेसी प्रभावकारी हेबे थालैछै । बालबालिका सबके उमेर अनुसार सोहो शिक्षक सबके अध्यापन करावे पडैछै। यनङ्ग करलासे बालक निक से अध्ययन या अन्य क्रियाकलाप सबमे चलाख है छै। बालबालिका सब अपनासे बड़का सबसे वोलैले डरावैत रहैछै । त्यहै से बोकर मनोवृतिके बारेमे हरेक समय शिक्षक सबके ध्यान देवे परेछै । यनङ्ग भेलासे बालबालिका सब प्रभावकारी ढंगसे अध्ययन करे लागैछै । यैहनाङ्ग शिक्षक तथा अभिभावक सब वोकर भविष्य निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करैले सकैछै ।

"महिला अधिकार पुरुषको गोजीमा"

पितृसत्ता देखि नै यस्तै चल्दै आईरहेको छ । परिवारमा पुरुष वा पिताको शासन नै पितृसत्ता हो । महिलालाई एउटा निश्चित सीमाभित्र राखिएको हुन्छ । विभिन्न धर्म, चालचलन, रीतिरिवाज आदि पक्षहरुको माध्यमवाट नारीहरुको शोषण भएको पहिचान हुदैन । नारीहरुको भुमिका निम्न हुनु, पुरुषहरु सर्वेसर्वा हुनु, पुरुष नियन्त्रणमा बस्नुपर्ने जस्ता क्रियाकलापहरुलाई अनुभूति गर्न नारीलाई पितृसत्ताले बाध्य तुल्याएको हुन्छ । महिलालाई जहिले पनि पुरुषको अधीनमा बस्नुपर्ने बाध्यतालाई स्वीकार गर्नै पर्छ । समाजिक, राजनितिक, आर्थिक लगायत अन्य क्षेत्रहरुमा महिलालाई पुरुषको आज्ञा, इशारा, आदेश र निर्देशनमा चल्नै पर्ने बाध्यता हुन्छ । यदि महिला पुरुषले भने जस्तो गरेन भने महिलाको चरित्र माथि दाग लगाउँन पछि पर्दैन जस्तो यही समाजमा देखिन पाईरहेको छ । महिलाहरुको मूल्य, मान्यता, अस्तित्वको कुनै ख्याल गरिदैन । कसरी र कति हदसम्म आफ्नो फाईदा र उपयोगका लागि प्रयोग गर्न सकिन्छ महिलालाई । श्रीमती बन्नु र बच्चा हेर्नु नै मुख्य काम हो भन्ने कुरा यही समाजमा हेर्न पाईन्छ । विवाहकै कुरामा हेरौ न ! आमाबुवाले रोजेको केटीसँग विवाह त गर्छन तर केटी मन परेको छैन भन्दछन । अधिकांश केटाहरुको भनाई यस्तै हुन्छ । तर यौन सम्बन्ध राख्न पछि पर्दैन । मनै नपरेको केटीसँग यौन सम्बन्ध राख्नु बलात्कार गरेको जस्तो भान समेत हुदैन। कहा छ महिला अधिकार कतै जानलाई पनि यदि श्रीमान् घरमा नरहेको बेला सोध्नै पर्ने अवस्था हुन्छ महिलालाई । पहिलाको जमानामा त फोनको पनि व्यवस्था थिएन कति गाहो हुन्थ्यो होला, अहिले त मोबाईलको जमाना छ । मोबाईल गोजीमा राखे झै महिला अधिकार गोजीमा राखेको हुन्छ छोरी छोरी मात्र जन्मियो भने त्यसमा पनि महिलाकै दोस । यो बोलीमा मात्र सिमित छ, छोरा होस वा छोरी दुवै बराबरी । हाम्रै समाजको शिक्षित पुरुषहरुलाई नै उदाहरणको रुपमा हेर्न सकिन्छ । जससम्म छोरा पाउदैन महिलालाई बच्चा जन्माउने मेसिनको रुपमा प्रयोग गरिन्छ ।।

प्रिया सिंह थारु

रेडियो छिन्नमस्ता राजविराज, सप्तरी

छोरा पाउन कुनै पनि कसर बाँकी राख्दैन । छोरा जन्मियोस भन्ने क मन्दिर मस्जिदमा भाकल गर्न बाँकी राख्दैन । विज्ञानको युगमा छोरा पाउन अरुको जीन किनेर भएपनि छोरा पाएर छाडछ । छोरीलाई घृणा गर्ने पुरुष छोरा कहाबाट ल्याउँछन । तै देवी, दुर्गा अगाडी आफ्ना सिर (टाउँकोः झुकाएर पुरुषको अविस्कार गर्छन । देवी, दुर्गा, काली, पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, भगवती महिला होइन ? जन्म दिने आमा पनि त महिला हो । फेरी महिला देखि यति घृणा ? पुरुषको अधिकार बीना छोरी जात यो धतीमा जन्मिन पाउदैन । पुरुषको गोजीमा छ महिला अधिकार । पुरुषले चाहयो भन्ने मात्र छोरी जन्मिने पाउने ? मान्छे जति जति शिक्षित हुदै जान्छ, त्यती त्यती नै समाजमा बढ्दै जान्छ महिला हिंसा । छोरी राम्रो बुढेलकालमा पनि साथ दिने साहारा । छोरालाई विहे गरेपछि आमा-बुवालाई छोरी जस्तो माया, ममता गर्दैन । छोरा जात भन्दा कयौं गुणा बढी बुझने हुन्छिन छोरी । "छोरा होस वा छोरी दुईवटा सन्तान जन्माएपछि नजन्माउनु होस फेरी, सानो परिवार सुखी परिवार "। शिक्षित व्यक्तिको लागि यो भनाई मात्र हो जस्तो मलाई लाग्छ । मुखमा राम-राम बगलमा छुरा जस्तै हो । समाजमा परम्परा देखि अस्तित्वमा रहँदै आएको पुरुष प्रवृत्तिले महिलाहरुमा यौनशोषणको घटनाहरु परिवारबाटै घटेका विभिन्न मिडिया, पत्रपत्रिका, रेडियो, टेलिभिजनमा देख्न, सुन्न पाईन्छ । पढेलेखेका भनिएका परिवारमा पनि महिलाहरुले पुरुषबाट जति जति सहयोग पाउँनुपर्ने हो सो नपाएको देखिन्छ भने धार्मिक कट्टर मान्यता बोकेको परम्परागत सोच र शैलीमा चल्ने समाजमा महिलाको अवस्था के होला ? पितृसत्तालाई ध्वस्त गरी क्रान्ति गर्न सकेमा मात्र नारीहरुले मुक्ति पाउँन सकिन्छ । यसबारे अवाज उठाउनु नितान्त आवश्यकता देखिन्छा।

सुश्री नीतु सिंह चौधरी

लहान नगरपालिका-१, सिरहा

हमकलेजमेजे देखलीयै

एस.एल. सी. पास करलाके बाद हम बहौत उत्साहके साथ नर्सिङ्ग स्टाफ नर्स) पढदै ले गलियै । मन मन बड खुसि छेलियैयै मानेसे जे शायद इन्स्टिच्युटके लोकेसनके हिसाब से हम अनुमान करने छेलियै जे वै क्षेत्रके बासिन्दा विद्यार्थीसाथी सबके बहुतेक सहभागिता हेतै। पहलका दिन दोसर दिन लगायत एक सप्ताह तक आशा भरोसा कैने छेलियै जे यै आसपास के साथी सब याव बढतै, ताब बढतै लेकिन देखालियै जे गैर तराई वासी सब । बाहुन, क्षेत्री, राई, लिम्बु) के संख्याजोड तोड से बैढ गेलै या हमरौ औरके के हैके मतलब स्थानीय तराई वासिके संख्या छ सात जना से बेसि नै बढ लै। जम्मा चालिस (४०) कोटा मे २ जना थारु (५%) (१ ज्ना सिरहा या १ जना सप्तरी), २ जना यादव (५%), (२ जना सिरहा १ या १ जना सप्तरी), १ जना महतो (२.५%) (सिरहा), १ जना तेली (२.५%) सिरहा या १ जना तराई वासी दलित २.५% सिरहा। जम्मा ७ जना (१७.५५॥ दोसर तर्फ बाँकी ३३ सीटमे ११ जना बाहुन (२७.५%), ९ जना क्षेत्री (२२.५%), ६ जना राई (१५%), ७ जना लिम्बु १७.५% सखुवासभा, भोजपुर, धनकुट्टा झापा, इलाम, मोरङ, सुनसरी) विधार्थीजम्मा ३३ जना (८२.५४) । हम तीन वर्ष तक ये इन्स्टिच्युट में अध्ययन करलियै लैकिन स्थिती उपरके लखा देखलियै । यी त में लै यै ठाममे बत। काठमाण्डौं, बिराटनगर शहर सबके सबस्था सोच त केहेन हेतै। उपरका लिखलाहा तथ्यांक से स्थिती केहेन बुझहाबै ये ? कि परिस्थिती भयाबह नै छै? सुविधाके हिसाबसे, जनसंख्याके अनुपात से हमरौ औरकेस्थामे ऊ जाती सब होना चाही या बोकरौरके स्थानमे हमरा सबके उपस्थिती होना चाही। लेकिन स्थिति ठिक उल्टा छै । यी अवस्था आबैके कारण के खोज तै? हमर व्यक्तिगत विचारसे येकर जिम्मेवारी सबसे पैहने हमरौ औरके आपने लेवे पर तै। हम रौ औरके समाज में अख नको तक शिक्षाप्राप्ति प्रती के सोचमे संवेदनशीलताके बड्का अभाव देखे चियै । हम रौ औरके समाज शिक्षाके नाममे लगानी करैले, जोखिम बोकैले नै चाहैत रहै छै जे सबसे बड्का दुखके बात चियै । बेटाके नाममे त भविष्यमे बृद्ध अवस्था में सेवा स्याहार सु सार करैले आशासे लगानी कैरीयो लै छै लेकिन बेटीके नाममे बहुतेक लोकहिच्किचाबैत रहेछै जे बेटी तपराया घर जाय बाला जायत चियै बेसिलगानी लगाके बेसी पढा लिखाके कि हेतै ? यी कोनो एकटा तराई वासी समाज के बात नै चियै, समाज निश्चित रुप मे यै समाजसे उदार छै बोकरी औरके मन शिक्षाके प्रति बहुतेक सकारात्मक छै। अन्तिम में हम बाबु भैया दैया मैया सबसे यी अनुरोध करैले चाहै चियै, जे यीजे बडका भारी भिन्नता दुइटा समाज के बीचमेजेछे, वोकरा कम करैले यै समाजके हृदय खोलै परतै, असल चिजके नक्कल करैयेले परतैताब यी दुइटा समाज के दूरी कम हेतै । यतहेक कहैत लगमे आइब रहल महान पर्व शुकराईत (दिपावली) या छैठ के शुभकामना दैत हम आपन कलम बन्द करै चियै। गोर लागै चियै । धन्यवाद ।

प्रिया सिंह थारु

रेडियो छिन्नमस्ता राजविराज, सप्तरी

छोरा पाउन कुनै पनि कसर बाँकी राख्दैन । छोरा जन्मियोस भन्ने क मन्दिर मस्जिदमा भाकल गर्न बाँकी राख्दैन । विज्ञानको युगमा छोरा पाउन अरुको जीन किनेर भएपनि छोरा पाएर छाडछ ।छोरीलाई घृणा गर्ने पुरुष छोरा कहाबाट ल्याउँछन । तै देवी, दुर्गा अगाडी आफ्ना सिर (टाउँकोः झुकाएर पुरुषको अविस्कार गर्छन । देवी, दुर्गा, काली, पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, भगवती महिला होइन ? जन्म दिने आमा पनि त महिला हो । फेरी महिला देखि यति घृणा ? पुरुषको अधिकार बीना छोरी जात यो धतीमा जन्मिन पाउदैन । पुरुषको गोजीमा छ महिला अधिकार । पुरुषले चाहयो भन्ने मात्र छोरी जन्मिने पाउने ?मान्छे जति जति शिक्षित हुदै जान्छ, त्यती त्यती नै समाजमा बढ्दै जान्छ महिला हिंसा । छोरी राम्रो बुढेलकालमा पनि साथ दिने साहारा । छोरालाई विहे गरेपछि आमा-बुवालाई छोरी जस्तो माया, ममता गर्दैन । छोरा जात भन्दा कयौं गुणा बढी बुझने हुन्छिन छोरी । "छोरा होस वा छोरी दुईवटा सन्तान जन्माएपछि नजन्माउनु होस फेरी, सानो परिवार सुखी परिवार "। शिक्षित व्यक्तिको लागि यो भनाई मात्र हो जस्तो मलाई लाग्छ । मुखमा राम-राम बगलमा छुरा जस्तै हो ।समाजमा परम्परा देखि अस्तित्वमा रहँदै आएको पुरुष प्रवृत्तिले महिलाहरुमा यौनशोषणको घटनाहरु परिवारबाटै घटेका विभिन्न मिडिया, पत्रपत्रिका, रेडियो, टेलिभिजनमा देख्न, सुन्न पाईन्छ । पढेलेखेका भनिएका परिवारमा पनि महिलाहरुले पुरुषबाट जति जति सहयोग पाउँनुपर्ने हो सो नपाएको देखिन्छ भने धार्मिक कट्टर मान्यता बोकेको परम्परागत सोच र शैलीमा चल्ने समाजमा महिलाको अवस्था के होला ?पितृसत्तालाई ध्वस्त गरी क्रान्ति गर्न सकेमा मात्र नारीहरुले मुक्ति पाउँन सकिन्छ । यसबारे अवाज उठाउनु नितान्त आवश्यकता देखिन्छा